सहृदयं सौमन्यम विद्वेणं कृणोमि वः।।
अन्योऽन्येमिः हर्षत वत्स जातामिवान्या।। (अर्ध्व 3/10/1)
अर्थ- हम पारस्परिक विद्वेष को त्याग कर सहृदय मनस्वी तथा उत्तम स्वभाव वाले हों। एक दूसरे को सदैव प्रेम की दृष्टि से देखें तभी हम सुखी रह सकेंगे।
यद् वदामि मधुमत तद्वदामि यदीक्षेतद्वनन्तिमा।
त्विषीमानस्म् जूतिमानवान्यान हन्मिदोधर ।। (अर्ध्व 12/1/58)
अर्थ - मैं सदैव अपने मुख से मीठे वचन बोलूँ (मन में दैवी गुण धारण करता हूँ) सभी मुझसे प्यार करें। मैं दिव्य प्रकाश को हृदय में धारण करूँ। जो बुरे तत्व मेरे समीप आयें, उनसे मैं सदा सुरक्षित रहँ।
पिनेश नाकं स्तुभिर्दमूनाः।। (ऋग्वेद 1/68/10)
अर्थ - याद रखिये, संयमी मनुष्य स्वर्ग को भी जीत लेते हैं। सुख शान्तिमय रहने का उपाय अपनी कुप्रवृत्तियों को संयम में रखना है।
अपवक्ता हृदयाविजश्चित्।। (ऋग्वेद 1/24/8)
अर्थ - उन कुवासनाओं और मानसिक पापों को त्याग दीजिये जो आत्मा को कष्ट दें। काम, क्रोध, भय, चिन्ता इत्यादि के कुविचार सदैव त्यागने योग्य हैं।
संकलनकर्ता - श्री रामदेव वर्मा
संरक्षक-नगर जाट सभा, वृन्दावन
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