महाराजा बदन सिंह के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में महाराजा सूरजमल का उदय हुआ। आप में असाधारण साहस, युद्ध-कौशल और राजनैतिक सूझबूझ एवं योग्यता थी जिसका प्रदर्शन सन् 1733 ई. में अपने पिता के समक्ष खेमकरण सोगरिया से भरतपुर की गद्दी हस्तागत कर तथा आमेर राज्य के उत्तराधिकार युद्ध में मराठा-मुगल तथा राजपूतों की सम्मिलित शक्ति को परास्त
कर ईश्वरी सिंह को आमेर का सिंहासन सन् 1742 ई. में दिलाया था।
सन् 1757 ई. में राजा बदन सिंह की मृत्यु के पश्चात् महाराज सूरजमल को हिन्दू शास्त्रानुसार विधिवत मंत्रोच्चार के साथ सिंहासन पर बैठाया गया। आप राजा बदन सिंह के 26 पुत्रों में पाँचवें थे।
महाराजा सूरजमल ने विदेशी आक्रांताओं से उत्तरी भारत को बचाने हेतु हरियाणा, पंजाब एवं राजस्थान के शासकों का पुष्कर में सम्मेलन बुलाया जिससे एक संगठन हो तथा मराठों से उत्तरी भारत को बचाया जा सके।
इसे मूर्त रूप देने में सर्वप्रथम सन् 1761 ई. में आगरा के किले को छीन लिया। महाराजा जवाहर सिंह ने मुसावी खाँ से फर्रुखनगर किला जीत लिया। रेवाड़ी, गढ़ी हरसू, रौहतक, बहादुर शाह से बहादुरगढ़, सराय वंसत, सुहाना आदि पर महाराजा का अधिकार हो गया। दिल्ली के आस-पास की फौजदारी प्राप्त करने के उद्देश्य से नजीबुद्दौला से युद्ध हुआ और 25 दिसम्बर सन् 1763 ई. को महाराजा का स्वर्गवास हो गया। आप समदृष्टा थे, जाति-पाति नहीं मानते थे। उन्होंने मंदिरों के साथ-साथ मस्जिद का भी निर्माण कराया था।
सूर्यवीर महाराजा सूरजमल की विजय गाथा
सूरज के सम सूरजमल तेजोमय शक्ति प्रबल था।
सूरज के सम सूरजमल तेजोमय शक्ति प्रबल था।
बृजमण्डल का रक्षक बन पैदा हआ वीर धवल था।।
श्यामगात ऊँचा ललाट नेत्रों में चमक बड़ी थी।
हिम्मत क्या अरि चक्षु उठादे तडिता दमक पड़ी थी।।
उम्र किशोरावस्था से रण करने ललक खड़ी थी।
माँडू, वगरू विजय किए अग्रिम पग सनक चढ़ी थी।।
जयपुर पक्ष ईश्वरीसिंह का ले रण किया सबल था।
सूरज के सम सूरजमल तेजोमय शक्ति प्रबल था।।
नवाब फतह अलीखान जो कोल का था अधिकारी।
मदद हेतु रविमल ढिंग आया पहुँच गया हितकारी।।
बल्लमगढ़ के बालू जाट को दिया संरक्षण भारी।
खान सलावत कर परास्त मेंटी उसकी मक्कारी।।
फतहगढ़ को फतह किया अरिमर्दन हुआ डबल था।
सूरज के सम सूरजमल तेजोमय शक्ति प्रबल था।।
सन् 1752 का था वर्ष महा सुखदाई।
कुँवर बहादुर राजेन्द्र की पदवी सूरजमल पाई ।।
मिली फौजदारी मथुरा की जो वीरता दिखाई।
बहादुर सिंह घसेरा बड़गूजर की करी सफाई ।।
किया अधीन घसेरा झण्डा फहरा ब्रजमण्डल था।
सूरज के सम सूरजमल तेजोमय शक्ति प्रबल था।।
जाट-मराठा युद्ध हुआ नहीं तन में दहशत मानी।
शौर्य वीरता देख हृदय घबड़ाते थे अफगानी।।
होडल, पलवल विजय किये अलवर जीता लासानी।
अब्दाली ने जाट शक्ति प्रतिभा मेटू दिल ठानी।।
चौमुहाँ पर अड़ गया जवाहर भागा तुरत मुगल था।
सूरज के सम सूरजमल तेजोमय शक्ति प्रबल था।।
हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई धर्म समान किये थे।
समदष्टा महाराजा के गुण हृदय ईश दिए थे।।
दिल्ली विजय करूँ रण रोपा ऐसे जाम पिए थे।
सुबह वक्त धोखे से मुगलों ने नृप मार लिए थे।।
"महेन्द्र सिंह" पच्चीस दिसम्बर मुरझा गया कमल था।
सूरज के सम सूरजमल तेजोमय शक्ति प्रबल था।।
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