आप एकान्त में और शान्त स्थान में बैठकर अपने जीवन के विषय में सोचिए। प्रात: हमारा जीवन प्रारम्भ होता है, मध्याह्न में
जीवन युवा होता है और सायंकाल के पश्चात् शनैः - शनैः जीवन समाप्त हो जाता है। हमारा आज का दिन जैसा व्यतीत हुआ है वैसा कल नहीं होगा और परसों भी नहीं। आज वर्तमान है और कल है भविष्य। भविष्य सदैव अनिश्चित है।
यदि हम चाहते हैं कि कल अच्छा व्यतीत हो तो इसके लिये हमें अपने आज को अच्छा बनाना होगा और अच्छा बनाने के लिये हमें अच्छी-अच्छी बातों का ज्ञान होना चाहिए। जो कि केवल अच्छी पुस्तकों में और अच्छे लोगों के आचरण में ही होता है।
आज मेरे समाज की कुछ अग्रणीय बन्धुओं द्वारा कुछ ऐसा ही करने का विचार उत्पन्न हुआ है। ताकि आज हम अपने समाज को बुराईयों एवं कुरीतियों के गर्त से निकालकर विश्व-पटल पर सबके सामने ला सकें। ताकि हमें और हमारे समाज से जुड़े सभी बन्धुओं को अपने आप पर गर्व महसूस हो। इसी चरण के अन्तर्गत मुझसे भी अपने विचार प्रकट करने के लिये कहा गया है, जो कि मेरे लिये परम हर्ष का विषय है। आज अपने समाज के लिये कुछ लिखते हुए मैं अपने आप को अत्यन्त भाग्यवान महसूस कर रहा हूँ कि मेरे विचारों का समावेश भी इस पत्रिका में हो रहा है।
अत: मेरे कुछ विचार आप लोगों के समक्ष उपस्थित हैं। जो कि आपको अपने विषय में और अपने समाज के विषय में सोचने के लिये अवश्य ही प्रेरित करेंगे। ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है।
आज आधुनिकता के इस दौर में हम रोज ही अपनी मानवीयता एवं मौलिकता को खोते जा रहे हैं। जिसका कि पूर्णतः असर हमारे समाज एवं हम पर पड़ रहा है और जिसका कि हम चाह कर भी प्रतिकार नहीं कर पा रहे हैं। यह दोष ही हमें अपनी संस्कृति और संस्कारों से दूर ले जा रहे हैं। यही कारण है कि हमारे नैतिक और चारित्रिक मूल्यों का दिन ब दिन पतन होता जा रहा है।
किसी भी समाज को सही दिशा में ले जाने के लिये एकता की अत्यन्त आवश्यकता होती है। समाज का निर्माण मुझसे और आप जैसे व्यक्तियों द्वारा ही होता है। व्यक्ति तो सामाजिक समूहों एवं संस्थाओं आदि का निर्माण भर ही करते हैं। इसके बाद व्यक्तियों का विकास समूह के विकास पर निर्भर हो जाता है। इस प्रकार का समाज
तभी सम्भव है जब समाज में एकता विद्वमान हो। एकता ही सर्वोच्च शक्ति है। किन्तु एकता बनाने के लिये नैतिकता का होना अति आवश्यक है।
एकता के अभाव में कोई भी समाज चाहे वो हमारा अपना "जाट समाज" हो या फिर कोई अन्य, जीवित नहीं रह पाता। सामाजिक एकता प्रत्येक समाज की आवश्यकता होती है। इन आवश्यकताओं को कोई भी व्यक्ति अकेला पूरा नहीं कर सकता। चाहे वह मैं खुद होऊँ या आप, हमें अपनी आवश्यकतायें पूरा करने के लिये एक-दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है।
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