कर्तव्य परायण व्यक्ति ही समय और परिस्थिति को अपने अनुकूल बना लेते हैं। किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिये उद्यम की आवश्यकता होती है, वह केवल चिन्तन अथवा मनोरथ करने से पूर्ण नहीं होता। वर्तमान समय चुनौतियों से भरा है। राष्ट्र आज विकासशील से विकसित अवस्था की ओर तेजी से अग्रसर होने लगा है। भारत की युवा प्रतिभाओं के योगदान से विश्व का कोइ कोना अछूता नहीं है। बौद्धिक कुशलता एवं श्रम यहाँ की विरासत है, जिसका उपयोग कर भारतीय युवा किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है। भारत का विकास समग्र एवं सर्वांगीण है। भौतिकता के साथ अध्यात्मिकता का समन्वय यहाँ की सर्वोपरि विशेषता है।
भौतिक एवं आर्थिक सम्पन्नता के बाबजूद खिन्न, उदास एवं उद्विग्न मनुष्य शान्ति की छोह तले पनाह लेने के लिये भारत की ओर आशा की निगाहों से ताक रहा है। इन दिनों धनी, निर्धन, शिक्षित-अशिक्षित सभी कोई अपने तुच्छ स्वार्थों की सिद्धि में बुरी तरह उलझे हुए है। लोक-चेतना लिप्सा और लालसा की कीचड़ में गहराई तक उलझी हुई है। अकर्मण्य तथा कामचोर अनैतिक व्यक्ति हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं, ईश्वर की कृपा से कार्य सिद्धि की चाहना रखते हैं जबकि सत्यता यह है कि ईश्वर भी उन्हीं की मदद करता है जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं। परिश्रमी तथा लग्नशील व्यक्ति ही जीवन में सफल होते हैं और सफलता उनके चरण चूमती है। धरती के कायाकल्प के पीछे संकल्प की शक्ति कार्य करती है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के शब्दों में “दृढ़ संकल्प एक गढ़ के समान है जो भयंकर प्रलोभनों से हमें बचाता है और डाँवाडोल होने से हमारी रक्षा करता है।"
विनोभा भावे ने भी कर्म को श्रेष्ठ माना है-“कर्म ही मनुष्य के जीवन को पवित्र और अहिंसक बनाता है।"
जो व्यक्ति महत्वाकाँक्षाओं की कटौती कर सकेगा उसके पास परमार्थ-प्रयोजनों में लगाने के लिये श्रम-समय मनो योग एवं साधनों की जरा भी कमी नहीं रहेगी। कर्म पथ पर चलने वाले व्यक्तियों ने ही इतिहास का निर्माण किया है और समय पर शासन किया है। भगवान कृष्ण, प्रेमचन्द्र, लालबहादुर शास्त्री, नादिरशाह, शेरशाह सूरी, राजा महेन्द्र प्रताप, चौ. छोटूलाल आदि ने जो कुछ भी पाया है वह सब अपनी दृढ़ शक्ति, साहस, धैर्य अपने ध्येयों में अटल विश्वास तथा कर्म शौर्य के कारण पाया। उद्यम ही सफलता की कुंजी है। परिश्रम ही हमारा देवता है। उद्यमी पुरुष सिंह के समान होता है। लक्ष्मी भी उसी का वरण करती है और उसी को सफलता प्राप्त होती है जो परिश्रम करता है। पंचतंत्र के अनुसार कार्य मनोरथ से सिद्ध न होकर उद्यम से सिद्ध होते हैं।
उद्यमेन हि सिद्धयन्ति कार्याणि न मनो रथैः।
नहि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।।
श्रेष्ठ सुसंस्कारी आत्मायें जब आगे चलती है तो सर्व साधारण अभीष्ट परिवर्तन के लिये आगे बढ़ते हैं। आज अग्रगमन करने वाले सुसंस्कारी भाई-बहिनों की अति आवश्यता है जो आस्थाओं का पुनर्जीवन और जनमानस का परिष्कार कर सकें।अवांछनीयताओं, विपत्तियों और विभिषिकाओं की सर्वत्र भरमार है। सुयोग्य प्रतिभायें सम्मिलित प्रयास से सबका निवारण कर सकती हैं।
भारत देव प्रिय राष्ट्र के रूप में प्रसिद्ध है भारत ही विश्व में देव संस्कृति की । दिग्विजय करता आया है। विश्व गुरु व सोने की चिड़िया के गौरव से गौरवान्वित होने वाला राष्ट्र आज किस स्थिति में है यह किसी से छिपा नहीं है। बल पौरुष, पराक्रम व युवा चेतना से मंडित भारत की वर्तमान स्थित बड़ी ही नाजुक है। ऐसे में उसकी चेतना को जगाना, सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देना व अपना आदर्श प्रस्तुत करके जनमानस का परिष्कार करना हम सबका परम कर्तव्य है।
इक्कीसवीं सदी वैज्ञानिक अध्यात्मवाद का उज्ज्वल भविष्य का सन्देश लेकर प्रस्तुत हो रही है। हमें अन्दर की दिव्यता और महानता को पहचान कर तदनुसार आचरण प्रस्तुत करना होगा। अहंताजन्य विकृति, द्वेष ही हमारे लिये हमारी आत्मसत्ता के विस्तार के लिये सबसे अधिक बाधक है। राग-द्वेष, वासना-तृष्णा, ईर्ष्या, दुश्मनी आदि में हम फंसकर जीवन गुजार रहे हैं। इनसे मुक्त होकर मोह और भ्रान्ति की स्थिति से हमें उबरना होगा। जीवन में अच्छे चारित्रिक गुणों के विकास हेतु यह आवश्यक है कि स्वयं को बुरे वातावरण से दूर रखा जाय। आदर्श चरित्र के लिये मन, वचन और कर्म की एकरूपता का होना आवश्यक है। युवा चेतना को श्रेष्ठ मार्ग पर चलना उन्हें अपने अनुभव की संजीवनी पिलाना हम सबका महान कर्तव्य है। हमें प्यार और अपनत्व की भावना रखकर जीवन जीने का कला सिखनी होगी। इसके लिये वातावरण का सृजन करना, प्रेरणा, प्रोत्साहन देना तथा उनके अन्दर छिपी प्रतिभा को पहचान कर गढ़ना, तरासना ही हमारा पावन कर्तव्य है। विचार जब आचरण में उतरते हैं तो कर्म बनते हैं। संकल्प पूर्वक विचारों को इच्छित दिशा में लगाने पर इच्छानुरूप परिणाम देते हैं।
मेजर डॉ. ब्रजेन्द्र सिंह
(M.A., M.Ed. LLB., PhD.)
अध्यक्ष-नगर जाट सभा, वृन्दावन
(अति विशिष्ट सेवा मैडल, रक्षा मैडल
भारत के राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत)
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