वृन्दावन नगर के कुछ उत्साही युवक अपनी 'जाट जाति'
के परिचयार्थ 'जाट संकल्प पत्रिका' का प्रकाशन करा रहे हैं। उनका यह प्रयास अत्यन्त प्रशंसनीय है। उनका विशेष आग्रह था कि इस पत्रिका के लिये मैं भी कुछ विचार दूं। मेरा जन्म भी भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र अनिरूद्ध की वंशावली में अग्र गोत्र में हुआ। प्रभु-प्रेरणा से मैंने हिन्दी, संस्कृत तथा वैदिक दर्शनों का अध्ययन कर अध्यापन का कार्य चुना। जाट जाति का होते हुए संस्कृत अध्यापक के रूप में ब्राह्मण नगरी-वृन्दावन में 54 वर्ष के वृन्दावन निवास काल में वृन्दावनजनों का असाधारण अपनत्व एवं सम्मान मिला, जिससे मैं अपने को पूर्ण सन्तुष्ट एवं सफल अनुभव करता हूँ।
जिस जाति में जन्म लिया उसकी अच्छाइयों-बुराइयों से मैं बहुत परिचित हूँ। जाट जाति स्वभावत: ईमानदार, निष्कपट, पाखण्ड रहित तथा परोपकार भाव वाली रही है। राष्ट्र-रक्षा में सेना में कार्य करने में रुचि रखने वाली, सामान्य रूप से कृषक जीवन व्यतीत करने वाली होने से शिक्षा की ओर कम ध्यान दे पायी है। किन्तु अब शिक्षा के प्रति जागरूक रहने लगी है। शिक्षा की ओर विशेष रूचि लेने की इस वर्तमान काल में अधिक आवश्यकता है। इस ओर जातीय संगठनों, संस्थाओं तथा शिक्षित युवाओं को विशेष प्रयास करने चाहिये।
इस अवसर पर मैं जाट-जाति में विशेष रूप से व्याप्त कुछ सामाजिक कुरीतियों तथा अवगुणों की ओर ध्यान आकर्षित करना आवश्यक समझता हूँ, जिनमें सुधार किया जाना अत्यन्त आवश्यक है ताकि इस जाति के सभी जन सुखी-सम्पन्न एवं उन्नत हो सकें। जाट जाति की सबसे बड़ी निर्बलता पारस्परिक ईर्ष्या-द्वेष और वैमनस्य है। जिसके कारण उसकी बहुत बड़ी शक्ति और क्षमता आपसी झगड़ों और मुकदमों (न्यायिक वादों) में क्षीण होती रहती है। यह सर्व विदित है कि जिला न्यायालयों एवं उच्च न्यायालयों में झगड़ों और सम्पत्ति के विवादों के लगभग 80 प्रतिशत वाद (मुकदमें) जाट जनों के ही होते हैं। जिनमें उनकी गाढ़ी कमाई का अकूत धन नष्ट होता है, जिससे उनके रहन-सहन में दीनता और बच्चों के पालन-पोषण शिक्षा आदि में अर्थाभाव के कारण अत्यन्त पिछड़ापन रहता है।
इसके अतिरिक्त जाट जनों में अनेक सामाजिक कुरीतियाँ व्याप्त हैं। जैसे-मृत व्यक्ति की तेरहवीं, क्रिया में विशाल सामूहिक भोज में अकूत धन नष्ट करना विवाहादि में दिखावे, आतिशबाजी और विशाल भोजों पर अकूत धन व्यय करना। इन कार्यों में पारस्परिक स्पर्धा और एक-दूसरे से बढ़चढ़ कर व्यय करने की अभिमान पूर्ण भावना उनका दिवाला निकाल रही है। बाल-विवाह और पुन: विवाह करना भी इस जाति में अभी प्रचलित है। इन कुरीतियों को यथा शीघ्र दूर करने के लिये व्यापक स्तर पर विशेष प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
प्रभु कृपा करें कि इस जाति के उत्साही युवक इस क्षेत्र में व्यापक प्रयास करें ताकि यह जाति सब प्रकार की कुरीतियों से यथाशीघ्र मुक्त होकर वर्तमान विकास की दौड़ में सबसे अग्रणी बन सके।
मैं हार्दिक शुभकामनाओं सहित यथाशक्ति सहयोग उन युवकों को मरण-पर्यन्त समर्पित रहेगा।
श्री रामदेव वर्मा
संरक्षक-नगर जाट सभा, वृन्दावन
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