कुछ-कुछ लोग या जातियों के व्यक्ति आपस में खूब ए माला उछल-कूद रहे हैं कि अब जाटों में खूब यूनियन की बातें, बैठकें, गाँव व शहर तथा जिलों में खूब जोरशोर से हो रही हैं। शायद ये जाति अब जागृति की
ओर अग्रसर हो रही है। ये सब बातें नई नहीं हैं। ये बातें तो शुरू से ही हैं तथा पंचायत कर बड़े जंग तक जीती गई हैं।
उदाहरण स्वरूप सन् 712 ईसवी में खलीफा और मोहम्मद बिन कासिम के सेनापति ने नब्बे हजार सैनिकों के साथ सिन्ध पर पांचवी बार आक्रमण किया। लेकिन जस्सा मोहना और मान जाट अपनी सर्वखाप पंचायती सेना को लेकर युद्धक्षेत्र में आ गये। इस भयंकर युद्ध की विजय पताका भी जाटों के हाथ में थी।
मोहम्मद गौरी से हुए युद्धों में दिल्ली में राजा पृथ्वीराज चौहान ने जाट पंचायतों से याचना की तथा जाट पंचायत ने दो बार अर्थात प्रथम बार 22000 तथा दसरी बार 18000 जाट सैनिक दिये। जाट सैनिकों ने गौरी को युद्ध में पन्द्रह मील तक पीछे धकेल दिया था। लेकिन पृथ्वीराज चौहान की सेना हतोत्साहित हो चुकी थी। इसी लिये उसकी हार हुई।
लेकिन 1204 ई. में गौरी अपने देश वापिस जा रहा था। तो सिन्ध में एक से पाँच लाख जाटों की पंचायती सेना ने छापा मारकर गौरी का सिर कलम किया था। 'भारत का नवीन इतिहास' के पृष्ठ 183 पर लिखा गया कि मोहम्मद गौरी सन् 1261 अर्थात् 15 मार्च 1206 में सिन्ध के किनारे एक खोखर जाट ने युद्ध में मार डाला था। इस खोखर जाट का नाम रामलाल था।
किसी भी समाज के लिये पत्र, पत्रिका का कार्य एक मार्गदर्शक की भाँति कार्य करता है। पत्रिकाओं के माध्यम से हमें नई-नई जानकारियाँ व एक-दूसरे के विचारों की प्राप्ति होती है। लेखन कार्य के द्वारा समाज में व्याप्त कुरीतियों को त्यागने का एक अभियान सा चलता है। हमें अपने अतीत को जिन्दा रखने के लिये भी कलम उठाने की आज महती आवश्यकता है।
हमें अपने महापुरुषों के आदर्शों का प्रचार-प्रसार कर उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी अपने समाज को देने की आवश्यकता है। हमारे स्वजातिय बन्धु शायद कलम के काफी कमजोर रहे हैं। तभी तो ज्यादातर इतिहासकारों ने जाटों को एक लुटेरा कह कर सम्बोधन किया है। जो बड़ी शर्म की बात है।
आज हम अपने जाट भाईयों से अपील करते हैं कि अब समय आ गया है। हमें व अपने बुद्धिजीवी वर्ग को कलम उठाने के लिये महती आवश्यकता है। हमें अपने बच्चों को किताबी ज्ञान के अलावा संस्कार भी देने की आवश्यकता है। बच्चों के बिगड़ने का सारा श्रेय केवल माँ-बाप पर जाता है। हमें अपने समाज को ज्यादा से ज्यादा संस्कार युक्त, रोजगार परख शिक्षा दिलाने की आवश्यकता है। अन्यथा हम समाज में और ज्यादा पिछड़ते चले जायेंगे।
मैं अपने सभी बुद्धजीवी भाईयों से अपील करता हूँ कि नई-नई जानकारियाँ या अच्छा इतिहासिक लेख व अन्य जानकारियाँ देकर नगर जाट सभा वृन्दावन द्वारा प्रकाशित स्मारिका के लेखन कार्य में अपना सहयोग प्रदान कर प्रकाशन कार्य को सुलभ बनायें। मैं अपने किसान व व्यापारी भाईयों से भी अपील करता हूँ। अगर नई जानकारी उनके पास है तो वो भी इस कार्य में अपना सहयोग दें।
श्री सत्यपाल सिंह (खुशी पुरा)
महामन्त्री-नगर जाट सभा, वृन्दावन
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