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जाट उत्पत्ति एवं संक्षिप्त इतिहास

जाट उत्पत्ति की जानकारी हमारे प्राचीन ग्रन्थों द्वारा हमें ज्ञात होती है कि जाट जाति की उत्पत्ति सृष्टि के आदिकाल में हो चुकी थी। जिनका वर्णन महाभारत, देव संहिता, शिव स्तोत्र जो कि अति प्राचीन ग्रन्थों में किया गया है। इन ग्रन्थों के अध्ययन से ही ज्ञात होता है कि जाट उत्पत्ति मनुष्योत्पत्ति के प्रारम्भ में ही हुई, इस प्रकार जाटों की उत्पत्ति को लगभग बारह करोड़ वर्ष हो गये हैं।


देवसंहिता के आधार पर महादेव जी की आज्ञा के बिना बगैर निमन्त्रण प्रजापति दक्ष की पत्री सती अपने पिता के यज आयोजन में जाती है। वहाँ अपने पति महादेव का अपमान होता देख यज्ञ कुण्ड में कूदकर अपने प्राण त्याग देती है। जब महादेवजी को इस वृतान्त की जानकारी होती है तो वे क्रोधित होकर अपने सिर से एक जटा को तोड़कर एक वीर योद्धा वीरभद्र को प्रकट करते हैं। भगवान शिव वीरभद्र को आज्ञा देते हैं कि जाओ प्रजापति दक्ष के यज्ञ को विध्वन्स कर दो। महादेव की आज्ञानुसार वीरभद्र द्वारा दक्ष का यज्ञ विध्वन्स कर दिया जाता है और यज्ञ में आये हुए सभी देव-ऋषियों को वीरभद्र द्वारा यथाउचित दण्डित किया जाता है। वीरभद्र के प्रकोप को शान्त करने के लिये ब्रह्माजी आते हैं और वीरभद्र को प्रजापति दक्ष के लिये जीवनदान देने की आज्ञा देते हैं। वीरभद्र ब्रह्मा जी की आज्ञानुसार दक्ष को जीवनदान दे देते हैं। 


राजा दक्ष प्रसन्न होकर अपनी पुत्री का विवाह वीरभद्र के साथ कर देते हैं। यही देवसंहिता ग्रन्थ में कहा गया है कि

सृष्टरादौ महामाये वीर भदस्य शकिततः।
कन्यानां दक्षस्य गर्भे जाता जट्टा महेश्वरी।।6।।

अर्थ - सृष्टि की आदि में वीरभद्र जी की योगमाया के प्रजापति दक्ष की कन्या सती के प्रभाव से जाट जाति की उत्पत्ति हुई।


योगिराज श्रीकृष्ण महाभारत युद्ध में विद्यमान थे। जिसे सं. 2067 विक्रमी में 5068 वर्ष से भी अधिक समय व्यतीत हो गया है और सम्राट याट योगिराज कृष्ण से जब 38वीं पीढ़ी पूर्व पैदा हुए जो कि उनके पूर्वज थे। इससे जाट शब्द की प्राचीनता का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। जैसे-यम्दग्नि से जमदग्नि यज्ञ से जज्ञ यजमान से जजमान, यमना से जमना, यशोदा से जसोदा एवं यश से जस शब्द का प्रचलन हुआ ठीक उसी प्रकार याट को जाट कहने लगे य से ज शब्द में परिवर्तित भाषा भेद के आधार पर स्वत: हो जाता है। अतः श्रीकृष्ण महाराज भी जाट कुल में अवतरित हुए। याट कुल में महाराजा यदु हुए महाराजा यदु के नाम से ही यदुवंश का नाम यदुवंश पड़ा। इस बात की प्रामणिकता अब से लगभग 978 वर्ष पूर्व विष्णु पुराण के आधार पर लेखक अलवेरनी ने अपनी भारत यात्रा सम्बन्धी पुस्तक में स्वीकार किया है अर्थात् जाट यदु के वर्तमान हिन्दी उच्चारण के सिवा कोई दूसरा शब्द नहीं है।


जट या जाट शुद्ध आर्य है तथा आर्यावर्त जो कि वर्तमान में भारतवर्ष कहलाता है। इनकी मातृभूमि है क्योंकि भारतीय आर्य जाति जिसके वंशधर खत्री, राजपूत, जाट, पठान, राजपूताना और कश्मीर में बसी हुई है क्योंकि पूर्व में आर्यवर्त अन्य किसी देश का नाम उल्लेख में नहीं है। जट या जाट जाति में ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, सम्राट उसयना, योगिराज कृष्ण महाराज, महान धर्नुधारी वीर अर्जुन, महाराजा गान्धार, महाराजा द्रुपद, महाराजा कुन्ती भोज आदि सभी प्राचीन आर्यो के वंश विद्यमान है और यह जाट जाति के आर्य होने का अकाट्य प्रमाण है। यह चिन्तामणि वेध द्वारा लिखित “द हिस्ट्री ऑफ मिडिवल हिन्दू इण्डिया" में अंकित है। सतलज नदी जो वर्तमान में भारत देशन्तर्गत पंजाब प्रदेश में बहती है। उसके पश्चिम भूभाग में जिस क्षत्रिय जाति को जट कहते हैं। उसी सतलज नदी के पूर्वी व दक्षिणी भूभाग जिसमें की वर्तमान में राजस्थान प्रदेश व उत्तर प्रदेश का सभी भूभाग आता है। जो जाट नाम से सम्बोधित है। 


सन् 1901 की जनगणना की रिर्पोट पृष्ठ 500 पर सरऐपजिले ने स्पष्ट स्वीकार किया है कि जाट शारीरिक बनावट के अनुसार शुद्ध आर्य हैं। जाट एक बहादुर कौम है। कुशल किसानों के रूप में इसने मानव जाति का भरण किया है। संकट के समय इसके रणबांकुरों ने जनता की रक्षा की है। जाट एक धर्म निर्पेक्ष सम्प्रदाय है। कट्टरवाद का जाटों ने सदा मुकाबला किया है और बड़ी शक्ति को निर्भीक चुनौती दी है। जाट पंचायत पद्धति न्याय प्रियता का अनुपम उदाहरण है। सिकन्दर से लेकर अब्दाली तक सभी विदेशी आक्रमणकारियों का जाटों ने डटकर मुकाबला किया है। आगरा मथुरा मण्डल के जाट सरदारों ने मुगलों की ज्यादतीयाँ विशेषकर औरंगजेब की कट्टर नीतियों को बड़ी चुनौती दी। महाराजा सूरजमल की शूरवीरता का कोई सानी नहीं है। उन्होंने मराठों को भरतपुर में संरक्षण दिया और अहमदशाह अब्दाली को रणक्षेत्र से कूच करने को मजबूर किया था ये सब बातें भारत के स्वर्णिम इतिहास का अभिन्न अंग है।

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