जंगल में एक ऋषि तपस्या कर रहे थे। एक दिन पेड़ पर बैठी एक चिड़िया ने उन पर बीट कर दी। ऋषि ने नेत्र खोल क्रोध से चिड़िया की ओर देखा। दृष्टि की तप से चिड़िया जलकर राख हो गई। ऋषि बहुत प्रसन्न हुए। गर्व से झूमते ऋषि भिक्षा के लिये नगर की ओर चल पड़े। एक घर के द्वार पर भीख की अलख जगाई। ऋषिवर-जरा प्रतीक्षा करें।
ऋषि ने कुछ देर बाद फिर अलख जगाई। प्रभु में पति को भोजन करा रही हूँ, पूर्ण होते ही द्वार पर आती हूँ, अन्दर से आवाज आयी। ऋषि क्रोध से लाल-पीले हो गये। पति के सामने मेरी उपेक्षा। गुस्से से थर-थर काँपते कमण्ड से हाथ में जल ले ऋषि श्राप देने वाले ही थे कि अन्दर से नारी के हँसने की आवाज आई। मुझे भी क्या चिड़िया समझ लिया है कि आपके श्राप से भस्म हो जाऊँगी?
ऋषि हैरान रह गये। जंगल में घटी घटना के बारे में इस गृहस्थ नारी को कैसे पता चला। तब नारी ऋषि के लिये भिक्षा लेकर द्वार पर आ गयी। ऋषि ने उससे पूछा । नारी ने कहा जबाव चाहिये। तो बाजार में कसाई की दुकान पर चले जाओ। कसाई जबाव देगा।
ऋषि कसाई के पास पहुँचे, उन्हें देखते ही कसाई हँसा, उस बहन ने आपको मेरे पास भेज दिया। क्षणभर बैठो इस ग्राहक को माँस तोलकर दे दूँ फिर आपसे बात करूँगा।
कसाई ने अपना काम खत्म कर हाथ पोंछा और ऋषि से बोला-पूछिये आप क्या पूछना चाहते हैं?
ऋषि बोले-हमने वर्षों में तपस्या की और वरदान में पाया की जिसकी ओर भी क्रोध से देख लें वह भस्म हो जाये। पर नगर की वह साधारण स्त्री जंगल में चिड़िया के भस्म होने की बात घर बैठे-बैठे कैसे जान गई। तुम दुकान पर बैठे-बैठे कैसे जान गये कि उस नारी ने हमें तुम्हारे पास भेजा है।
कसाई बोला-सृष्टि का एक नियम है कि आत्मा शरीर धारण करके संसार में आती हैं। उसके समाज और परिवार के प्रति दायित्व होते हैं। जिनका वह निर्वाह करता है। आप संसार पर परिवार के प्रति कर्तव्यों से मुख मोड़कर जंगल के एकान्त में तप करने चले गये। बिना यह सोचे कि आपके न होने से आपके परिवार पर क्या बीती होगी। पर बदले में क्या पाया क्रोध और अहंकार से बढकर किसी के प्राण लेने का वरदान। लेकिन किसी के प्राण लेना तो बहत आसान है, किसी को प्राण देकर दिखाइये। ऋषि चुपचाप कसाई के बात सुनते रहे।
कसाई आगे बोला-जिस नारी को आप साधारण गृहस्थन समझते हैं वह अपने परिवार और पति के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने के कारण सही मायने में तपस्वी है। आप मेरे काम को नीच समझते हैं, लेकिन यह मेरी आजीविका का साधन है। जिसके माध्यम से मैं अपने परिवार का भरण-पोषण करता हूँ। मैं पूरी ईमानदारी से अपना काम करता हूँ। ग्राहक मेरी प्राथमिकता है। ईमानदारी से काम और संसार के प्रति कर्तव्यों का पालन करना ही सच्ची तपस्या है।
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