बात 1363 की है जब तैमूर लंग ने भारत में पंजाब के रास्ते भारत में घुसा तो जाटों के ये आभाष हो गया था कि तैमूर लंग पंजाब के बाद सीधा उत्तर प्रदेश पर आक्रमण करेगा क्यों कि उत्तर प्रदेश उस समय भी काफी समृद्ध राज्य था।
उसी वक्त जाटों ने तैमूर लंग से निपटने के लिए सेना तैयार की जिसमे करीब चालीस हजार महिलाएं भी थीं जो सभी शस्त्रों से सुसज्जित थीं। महिलाएं दिन में तैमूर लंग की सेनाओं से युद्ध करतीं और रात में वे अपनी सेना के लोगों के लिए खाना बनातीं थीं।
तैमूर लंग की सेना दिन में युद्ध करके थक जाती थी परन्तु जाट तो रात में भी उनसे युद्ध करते रहते थे। हरिद्वार के करीब पथरीगढ़ (ज्वालापुर) में जाटों का और तैमूर लंग के बीच घमासान युद्ध हुआ और तैमूर लंग की सेना के दाँत खट्टे कर दिए।
तैमूर लंग को समझ में आ गया कि जाटों से युद्ध में पार पाना असंभव है और उसकी सेना युद्ध के मैदान से भाग खड़ी हुई लड़ाई के दौरान ही जाट सेना के सेनापति हरबीर सिंह गुलिया ने तैमूर लंग की छाती पर अपने भाले से ऐसा वार किया कि वो घायल होकर घोड़े से गिर गया और युद्ध के मैदान से भाग गया। उस भाले का वार इतना तीव्र और गहरा था कि समरकंद के रास्ते में ही तैमूर लंग की मृत्यु हो गयी और कुछ लोगों का मानना है कि उसने समरकंद में जाकर तैमूर लंग की मृत्यु हुई थी।
तो भाइयो ऐसे हैं हमारे जाट वीर इसलिए जब जाट समाज एक हो जाता तो फिर किसी भी आक्रांता या अत्याचारी की इतनी हिम्मत नहीं कि भारत की तरफ कोई आँख उठा कर देख सके।
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