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गुरुवार, 12 सितंबर 2019

प्रेरक प्रसंग : सेवायुक्त समर्पण

आँधी ने मन्द वायु से कहा - 'शक्तिवान बनने में ही गौरव है, मैं जब अपने आवेश के साथ चलती हूँ तो पेड़ उखड़ जाते हैं, प्राणियों की मेरे सामने ठहरने की हिम्मत नहीं होती। सभी अपना बचाव करने के लिये छिपते-फिरते हैं। जिन्दगी ऐसा जीनी चाहिए कि लोग उसका लोहा माने और डरते रहें।'


मंद वायु बोली - 'दीदी तुम सामर्थ्यवान हो। जो चाहो सो कर सकती हो, पर मुझे इसमें ही आनन्द आता है। धीमी चलती हूँ ताकि किसी को कष्ट न हो, निरन्तर बहती हूँ ताकि सेवा के आनन्द से क्षणभर के लिये भी वंचित न रहना पड़े। मुरझाए चेहरों पर शीतल सुगंधित पंखा झलते हुए जो संतोष प्राप्त होता है, मेरे लिये वही सब कुछ है। तुम्हें शक्ति का हर्ष प्रिय लगता है, पर मेरे लिए तो सेवायुक्त समर्पण ही सब कुछ है।'

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