वस्तुओं और धन आदि में जो सुख दीखता है एवं सुख की आशा करते हैं, तो क्या उनमें पूरा सुख है। क्या उनके सम्बन्ध से कभी दु:ख होता ही नहीं। क्या वे सदा रहेगे ? क्या उन वस्तुओं के रहते हुए दु:ख होता ही नहीं ? ऐसा तो हो ही नहीं सकता
प्रत्यत्त उन वस्तुओं के सम्बन्ध से - अपनी मानने से लोभ-जैसा नरक-द्वाररूप भयंकर दोष उत्पन्न हो जाता है, जो जीते-जी आग की तरह जलाता ही रहता
है और मरने पर सर्प आदि दु:खद योनियों तथा महान् यन्त्रणामय नरकों में ले जाता है।
इसी प्रकार आप अपने घर के निजी प्राणियों से सुख चाहते हैं, तो क्या वे सभी सुखी हैं ? क्या कभी दु:खी नहीं होते ? क्या वे सभी आपके साथ रहते भी हैं ? क्या रहना चाहते भी हैं ? क्या वे सभी
आपके साथ रह भी सकते हैं ? क्या पहले वाले साथी सभी आपके साथ हैं ? क्या उनके मनों में और शरीरों में परिवर्तन नहीं होता है ? क्या उनमें से किसी के मन में किसी प्रकार की कमी का बोध नहीं के
होता ? क्या वे सर्वदा सर्वथा पूर्ण हैं ? क्या वे सभी किसी से कुछ भी नहीं चाहते हैं ? कम से कम आपसे कुछ नहीं चाहते होंगे, सोचिये!
जो दूसरों से अपने लिए कुछ भी चाहता है, क्या वह दूसरों की चाह
पूरी कर सकता है ? क्या खुद सुख चाहने वाला औरों को सुख दे सकता है ?
सबका हर समय वियोग हो रहा है। आयु पल-पल में घट रही है। मृत्यु प्रतिक्षण समीप आ रही है। यह बातें क्या विचार से नहीं
दिखती हैं ? अगर कहें कि हाँ, दिखती है तो ठीक तरह से क्यों नहीं देखते ? कब देखेंगे, किसकी प्रतिक्षा कर रहे हो ? क्या इस मोह में पड़े रहने से आपको अपना भला दिखता है ? अगर नहीं तो आपका
भला कौन करेगा, किसके भरोसे बैठे हो। बतायें तो सही, ऐसे कब तक काम चलेगा ? कभी सोचा है ?
कब सोचोगें आपका साथी कौन है ? क्या यह शरीर, जिसे आप मेरा कहते हैं 'मैं' भी कह देते हैं, आपकी इच्छा के अनुसार निरोग रहेगा। क्या जैसा चाहें वैसा
काम देगा ? क्या सदा साथ रहेगा, मरेगा नहीं, बतलाईये! इस तरफ आपने अपनी विवेक-दृष्टि से देखा भी है ? कब देखेंगे ? क्या इस
विषय में अपरिचित ही रहना है ? क्या यह बुद्धिमानी है ? क्या इसका परिणाम और कोई भोगेगा ? चेत करे।
पहले आप
जिन वस्तुओं और कुटुम्बियों के साथ रहे हैं, वे सब आज हैं क्या ?
एवं आज जो आपके साथ हैं, वे रहेंगे क्या ? वे सब-के-सब सदा साथ रह सकते हैं क्या ? जरा थोड़ा ध्यान दें, विचारें तो सही!
यदि
आप ठीक विचार करेंगे तो आपको ज्ञान हो जायेगा कि सदा साथ रहने वाले तो केवल एक वे परम कृपामय परमात्मा ही हैं अतः आपको उन्हीं के चरणों की शरण लेनी चाहिए।
संकलनकर्ता
कन्हैया चौधरी, वृन्दावन, मथुरा
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